अध्यात्म और समर्पण

अध्यात्म के जगत का सबसे बड़ा सूत्र है समर्पण ।
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समर्पण मतलब पूर्ण स्वीकार जो भी होगा, जीवन में अच्छा या बुरा सब मुझे स्वीकार है । एक दुःसाहस चाहिये फिर बिना कुछ करे ही भाव करते ही जीवन में क्रांति घटित होती है । कुछ भी घटे जीवन में पूर्ण स्वीकार । जो हो रहा है उसे देखते रहिये । ये न सोचो ये ठीक हुआ, ये न सोचो ये गलत हुआ, जो हुआ बस उसे देखो, किसी भी अच्छी या बुरी घटना के प्रति कोई भी प्रतिक्रिया नही । सात दिन अपने आप को पूरी तरह से परमात्मा को सौफ दो ये एक प्रयोग करके देखिये । पूरा का पूरा जीवन परिवर्तित हो जायेगा । असीम आनन्द दिन प्रतिदिन बढ़ता जायेगा । अपनी सारी चिंताओं को ईश्वर को समर्पित कर दो । अपने आप को पूर्णतः ईस्वर को समर्पित कर दो ।
पूर्ण समर्पण कर ये मत सोचो की क्या होगा । पूर्ण समर्पण करो अपने आप का । पूर्ण समर्पण करते ही अनन्त आनंद, या ध्यान की घटना अपने आप घटने लगेगी ।सौफ दो अपने आप को परमात्मा के हाथों में । अगर जरा सा भी, इंच भर भी कुछ सोचा, तो ये फिर समर्पण नही । इंच भर भी कुछ न सोचो, पूर्ण समर्पण में ध्यान की घटना अपने आप घटने लगती है । कुछ भी सोचने का मतलब की अभी समर्पण नही हुआ है । पूर्ण समर्पण जीवन का सबसे बड़ा सूत्र है । समर्पण करते ही, उसी समय तुरन्त ही असीम आनन्द भीतर बढ़ता ही चला जायेगा । पूर्ण समर्पण में ही परमात्मा की महान कृपाओं का पता चलता है । पूर्ण समर्पण मे है परम् आनन्द ।
।। हर हर महादेव ।। 
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।। हर हर महादेव ।। 

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